इस लेख में आप पढ़ेंगे: इस लेख में आप पढ़ेंगे: भारत में लिथियम के भंडार और उसके महत्व (Lithium reserves in India)- UPSC
हाल ही में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को जम्मू-कश्मीर में लिथियम के 59 लाख टन के विशाल भंडार का पता चला है। ये भंडार जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में सलाल हेमना ब्लॉक में मिले है। यह इलाक़ा चिनाब नदी पर बने 690 मेगावाट की क्षमता वाले सलाल पावर स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर है। इससे पहले साल 2021 में इसी तरह का एक लिथियम भंडार कर्नाटक के मांडया में मिला था। हालांकि मात्रा के लिहाज़ से ये काफी छोटा (1600 tonnes) है। इसके अलावा, 2021 तक कुल सात लिथियम अन्वेषण किए गए हैं। यह परियोजना कर्नाटक और राजस्थान में परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy (DAE)) के तहत अन्वेषण और अनुसंधान के लिए परमाणु खनिज निदेशालय (Atomic Minerals Directorate for Exploration and Research (AMDER)) द्वारा की जा रही है। इस खोज के विविध महत्व हैं। यह ईवी बैटरी, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ये लिथियम भंडार (Lithium Reserves) भारत के बढ़ते ईवी उद्योग के लिए लिथियम की मांग को पूरा करने में मदद कर सकते हैं। यह भारत को अपने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।
लिथियम के उपयोग
लिथियम एक बहुत ही हल्की और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और क्षारीय (alkaline) धातु है। यह मुख्य रूप से सिरेमिक और ग्लास, ग्रीस, फार्मास्युटिकल कंपाउंड, एयर कंडीशनर और एल्यूमीनियम उत्पादन आदि में उपयोग किया जाता है। हालांकि, इसका मुख्य उपयोग इसकी प्रति किलोग्राम उच्चतम ऊर्जा भंडारण क्षमता के कारण बैटरी में होता है। इसकी उच्च ऊर्जा भंडारण क्षमता इसके बेहद हल्के वजन के साथ मिलकर इसे टेस्ला जैसे इलेक्ट्रिक कार निर्माताओं के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है। दुनिया में लिथियम का जितना उत्पादन होता है उसका 74 फ़ीसदी बैटरियों में होता है। इसके अलावा सेरामिक और कांच, लुब्रिकेटिंग ग्रीस और पॉलिमर के उत्पादन में भी इसका इस्तेमाल होता है। उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक लिथियम की मांग 30 लाख टन तक हो सकती है।
इसका उपयोग उन बैटरियों के निर्माण के लिए किया जाता है, जिनके बिना इलेक्ट्रिक वाहन नहीं चल सकते। इसलिए इसका नाम ‘सफेद सोना’ पड़ा। यदि भारत के पास लिथियम के अपने स्रोत हैं, तो उसे अपनी लिथियम जरूरतों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर नहीं होना पड़ेगा, जैसा कि वह वर्तमान में करता है। 2020-21 में, भारत ने 173 करोड़ रुपये मूल्य के लिथियम और 8,811 करोड़ रुपये मूल्य के लिथियम आयन का आयात किया। इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती ज़रुरत और मांग के कारण भारत की लिथियम की जरूरतें भी बढ़ने की संभावना है। दूसरे, लिथियम के भंडार भी दुर्लभ हैं। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के सीनियर प्रोग्राम लीड ऋषभ जैन के अनुसार दुनिया भर में 98 मिलियन टन लिथियम है। उन्होंने कहा कि अब भारत ने इन संसाधनों का 5.5% खोज लिया है।
भारत के लिए लिथियम का महत्व:
- जम्मू-कश्मीर में लिथियम का विशाल भंडार मिलने से ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेदार कार्बन उत्सर्जन को कम करने की भारत की कोशिशों को बड़ा बल मिलेगा। इसकी वजह से साल 2030 तक देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के निर्माण में 30 फ़ीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है।
- लिथियम के भंडार मिलने से इस क्षेत्र में ग्लोबल मानचित्र पर भारत की उपस्थिति दर्ज हो गई है। अब पूरे विश्व में यह संदेश चला गया है कि देश इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन रहा है और जल्दी ही उसकी गिनती भी लिथियम निर्यात करने वाले बोलिविया, अर्जेंटीना, चिली, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन जैसे देशों के साथ की जाने लगेगी।
- इससे ग्रीन इंडिया और ईको फ्रेंडली इंडिया बनाने के सपने को साकार करने की दिशा में मदद मिलेगी।
- लिथियम के भंडार मिलने से जम्मू-कश्मीर के लोगो के लिए रोज़गार के नए अवसर पैदा हो सकेंगे। उत्पादन शुरू होने पर कुशल, अकुशल और अर्धकुशल श्रमिकों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा।
- हाल के दिनों में, ख़ासकर कोरोना महामारी के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लिथियम की मांग बढ़ रही है। दूसरी तरफ तमाम देश जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिए ग्रीन एनर्जी को अपनाने की तरफ बढ़ रहे हैं और इसमें भी लिथियम की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
- लिथियम का इस्तेमाल बार-बार रीचार्ज की जा सकने वाली बैटरियों में होता है। इन बैटरियों का इस्तेमाल स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप से लेकर इलेक्ट्रिक कारों में किया जाता है। इससे डीज़ल और पेट्रोल गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण कम करने की दिशा में मदद मिलेगी।
भारत का मौजूदा लिथियम रिजर्व बनाम विदेशों में लिथियम रिजर्व:
बोलिविया के पास 21 मिलियन टन लिथियम, अर्जेंटीना के पास 17 मिलियन टन लिथियम, चिली के पास 11 million tonnes और ऑस्ट्रेलिया के पास 6.3 मिलियन टन लिथियम के भण्डार है (US Geological Survey data)। जबकि, चीन के पास 45 लाख टन लिथियम है। फोर्ब्स के अनुसार, चीन दुनिया के कुल लिथियम भंडार के 7.9% का मालिक है, और 2020 में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लिथियम आपूर्तिकर्ता रहा।
तीन देशों, बोलीविया, चिली और अर्जेंटीना को एक साथ ‘लिथियम त्रिभुज’ (Lithium Triangle) कहा जाता है क्योंकि दक्षिण अमेरिका इस धातु का अत्यधिक समृद्ध स्रोत है।
यूएस-आधारित (USA) समिति के अनुसार, चीन ने लिथियम अन्वेषण के लिए 2018 से 2020 तक विदेशी खनन में $16 बिलियन का निवेश किया। इसने दक्षिण अमेरिका के ‘लिथियम त्रिकोण’ क्षेत्र में भी निवेश किया। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन के क्षेत्र में चीन का वैश्विक प्रभुत्व है। वर्तमान में, बीजिंग इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के लिए आवश्यक रासायनिक लिथियम आपूर्ति का 55 प्रतिशत रखता है। अब, यह लिथियम त्रिकोण में भी अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है। अर्जेंटीना के कॉचारी-ओलारोज ऑपरेशन में चीन के गणफेंग लिथियम की अधिकांश हिस्सेदारी है, जिसे दुनिया की शीर्ष लिथियम उत्पादन खानों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, यह भारत के सबसे बड़े ईवी बैटरी आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है, बशर्ते क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन के साथ उसके तनावपूर्ण संबंध हों। भारत को ईवी बैटरी आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भर हुए बिना ईवी निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए, इस तरह के अधिक लिथियम भंडार का मालिक होना और विदेशी लिथियम खानों में अपनी उपस्थिति बढ़ाना महत्वपूर्ण है।