इस लेख में आप पढ़ेंगे : जलवायु परिवर्तन को रोकने में परमाणु ऊर्जा की भूमिका – UPSC
पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर कर लगभग 200 देशों ने इस सदी से मध्य तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ख़त्म करने का वादा किया है। लेकिन चिंता इस बात की है कि क्या अकेले सौर और पवन ऊर्जा से ऐसा कर पाना संभव हैं? यदि जल्द से जल्द जलवायु परिवर्तन को रोकना है तो क्या परमाणु ऊर्जा बेहतर विकल्प हो सकता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने में परमाणु ऊर्जा मददगार तो साबित हो सकती है, लेकिन इसके साथ कुछ ऐसी चिंताएं भी पैदा होती हैं, जो पवन या सौर ऊर्जा के साथ नहीं होतीं जैसे कि –
- परमाणु कचरे की समस्या सबसे गंभीर है। गहरी खुदाई करके इस कचरे को इस तरह से सुरक्षित रखना होता है ताकि ये कम से कम 1000 साल तक भूजल के संपर्क में न आए. तकनीकी रूप से ऐसा करना मुश्किल नहीं है मगर लोग नहीं चाहेंगे कि उनके नज़दीक ऐसा कोई कचरा स्टोर किया जाए।
- परमाणु संयंत्र को डिज़ाइन और तैयार करने में भारी-भरकम खर्च होता है और फिर उससे तैयार ऊर्जा भी काफ़ी महंगी होती है।
- न्यूक्लियर पावर प्लांट चलाना है तो सुरक्षा पर भी भारी भरकम खर्च करना पड़ता है।
- जिस तकनीक से परमाणु ऊर्जा तैयार की जाती है, उससे परमाणु हथियार बनाने का भी रास्ता खुलता है। उत्तर कोरिया और ईरान समेत कई मामलों में हमने देखा है कि परमाणु ऊर्जा केंद्रों में परमाणु हथियार बनाने की कोशिश की जाती रही है। और अगर कोई देश ऐसा करना चाहे तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय चाहकर भी उसे नहीं रोक सकता।
चेर्नोबिल और फ़ुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के पश्चात लोगों का परमाणु ऊर्जा के प्रति विश्वास घटा है। हालाकि ख़राब डिज़ाइन और मानवीय चूक के कारण चेर्नोबिल हादसा हुआ था। ऐसे ही फ़ुकुशिमा में जो हुआ, वह एक प्राकृतिक आपदा थी। ऐसा माना जाता है कि कार्बन को घटाने का 80 प्रतिशत लक्ष्य सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा से पूरा किया जा सकता है। लेकिन बाकी के 20 प्रतिशत को हासिल करने के लिए परमाणु ऊर्जा पर भी विचार करना चाहिए। नए रिऐक्टर्स बनाकर इनमें आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस इस्तेमाल करके लागत घटाई जा सकती है। आज नई तकनीक से ऐसे रिऐक्टर तैयार किये जाने की आवश्यकता है जिन्हे कहीं भी आसानी से लगाया जा सके और ज़रुरत के हिसाब से इनकी संख्या को बढ़ाया भी जा सके।
आज परमाणु ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा के मध्य समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए जीवाश्म ईंधनों पर हर हाल में रोक लगनी ही होगा और अक्षय ऊर्जा कम से कम आज की स्थिति में इतनी विकसित नहीं हो पाई है की दुनिया की ऊर्जा मांग को पूरा कर सके। अब ऐसे में परमाणु ऊर्जा पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है और अतीत में होने वाली दुर्घटनाओं का मूल्यांकन करते हुए परमाणु क्षेत्र में नई तकनीकि के साथ सुरक्षा इंतज़ाम करने होंगे। इस साल नवंबर महीने में भारत समेत 200 से ज़्यादा देश ‘जलवायु परिवर्तन’ पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में हिस्सा लेंगे जो ब्रिटेन में आयोजित किया जाएगा।