इस लेक में आप पढ़ेंगे: एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण और क्रीमी लेयर का औचित्य – UPSC / SC & ST Sub-classification
एक अगस्त 2024 को सर्वोच्च न्यायलय की सात सदस्यीय पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण बारे में ऐतिहासिक फै़सला सुनाते हुए कहा कि सरकार इन समुदायों के आरक्षण सीमा के भीतर अलग से वर्गीकरण (sub-classification/sub-categorization) कर सकती है . साथ ही साथ यह सिफ़ारिश भी की गई कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान होना चाहिए और यह अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वर्ग पर लागू क्रीमी लेयर के प्रावधान से अलग होना चाहिए.
वर्गीकरण क्यों?
1975 में पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति की नौकरी और कॉलेज के आरक्षण में 25% वाल्मीकि और मज़हबी सिख जातियों के लिए निर्धारित किया था. इसे हाई कोर्ट ने 2006 में ख़ारिज कर दिया था. ख़ारिज करने का आधार 2004 का एक सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला था (ई.वी.चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य), जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति की सब-कैटेगरी नहीं बनाई जी सकती. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यों के पास ये करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अनुसूचित जाति की सूची राष्ट्रपति की ओर से बनाई जाती है. इसी प्रकार आंध्र प्रदेश ने भी पंजाब जैसा एक कानून बनाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया था. पंजाब सरकार ने एक बार फिर नया क़ानून बनाया, जिसमें यह कहा गया कि अनुसूचित जाति के आरक्षण के आधे हिस्से में इन दो जातियों को प्राथमिकता दी जाएगी. यह क़ानून भी हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था. आखिरकार यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ के पास पहुंचा जिसने एक अगस्त के फ़ैसले में 2004 के अपने ही निर्णय को पलट दिया है.
क्या होगा असर?
- सरकार को सब-क्लासिफिकेशन का निर्णय करना होगा और सब-क्लासिफिकेशन पर जुडिशियल रिव्यू भी लगाया जा सकता है.
- अनुसूचित जाति का आरक्षण छुआछूत के आधार पर दिया जाता है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपने सियासी लाभ के लिए सब-क्लासिफिकेशन का सहारा लेंगी.
- अब अनुसूचित जाति और जनजाति भी क्रीमी लेयर के दायरे में आएँगी. क्रीमी लेयर कैसे निर्धारित किया जाएगा इस पर आम सहमति बनाना आसान नहीं होगा.
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 के मुताबिक भारत के 28 राज्यों में 1108 जातियां हैं, परन्तु आरक्षण का लाभ केवल मुट्ठी भर लोगों को ही मिला है. इस फ़ैसले का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि जिन लोगों को आरक्षण से आर्थिक लाभ हुआ है, उन्हें अब आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र के आधार पर, ऐसे लोग आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकेंगे.
क्रीमी लेयर क्या है?
‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा इंद्रा साहनी मामले (1992) में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद पेश की गई थी, जिसमे ओबीसी में उन्नत वर्गों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. वर्तमान में आठ लाख से अधिक वार्षिक आय वाले परिवारों को क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है. यह आय सीमा सरकार की ओर से समय-समय पर संशोधित की जाती है. इसके अतिरिक्त, ग्रुप ए और ग्रुप बी सेवाओं में उच्च पदस्थ अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर में शामिल हैं. डॉक्टर, इंजीनियर और वकील जैसे संपन्न पेशेवरों के बच्चों को भी क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है. इसके अलावा बड़े पैमाने पर कृषि भूमि के मालिक परिवारों को भी क्रीमी लेयर में शामिल किया गया है. किसी अभ्यर्थी की क्रीमी लेयर स्थिति का निर्धारण उसके माता-पिता की स्थिति के आधार पर किया जाता है, न कि उसकी अपनी स्थिति या आय या उसके/उसके जीवनसाथी की स्थिति या आय के आधार पर.
अगर आरक्षण का लाभ समान रूप से वितरित किया जाता है और हाशिये पर पड़े लोगों को मौका मिलता है तो उनका भी सर्वांगीण विकास हो सकता है इससे जाति समानता की स्थापना में मदद मिलेगी ऐसे में सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय स्वागत योग्य है