इस लेख में आप पढ़ेंगे : ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के मध्य तनाव – UPSC
चीन और अमेरिका के बीच अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर तनाव की परिस्थिति बनी हुई है. पिछले 25 सालों में ये अमेरिका के किसी उच्चस्तरीय राजनेता की पहली ताइवान यात्रा रही है. चीन वन-चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपने से अलग हुआ एक प्रांत मानता है हालाँकि ताइवान ख़ुद को एक स्वतंत्र देश मानता है जिसका अपना संविधान और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है. अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज़ से चीन यदि ताइवान पर क़ब्ज़ा कर लेता है तो वह पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने को आज़ाद हो जाएगा. उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने को भी ख़तरा हो सकता है.
ताइवान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार ताइवान, चीन के नियंत्रण में किंग राजवंश के दौरान 17वीं सदी में आया था. जापान के साथ हुई पहली लड़ाई में हारने के बाद चीन ने 1895 में ताइवान को जापान को सौंप दिया. उसके बाद अगले 50 सालों तक ताइवान जापान के कब्जे में बना रहा. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में जापान के हारने के बाद चीन ने फिर से ताइवान पर अपना नियंत्रण कर लिया. लेकिन इसी समय चीन की मुख्यभूमि में गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गया था. यह गृहयुद्ध मोओत्से तुंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनलिस्ट पार्टी ‘कुओमिंतांग’ के बीच हो रहा था. 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन पर नियंत्रण कर लिया. उससे बचने के लिए कुओमिंतांग सरकार ने ताइवान जाकर शरण ले ली थी .अस्थाई राष्ट्रपति सनयात सेन के बाद च्यांग काई शेक ताइवान के पहले राष्ट्रपति बने, जो तानाशाह शासक के रूप में 1975 तक इस पद पर रहे. उनके निधन के तीन साल बाद तब के प्रधानमंत्री और च्यांग काई शेक के बेटे च्यांग चिंग कुओ ताइवान के राष्ट्रपति बने. उन्होंने ताइवान की शासन व्यवस्था को तानाशाही से लोकशाही की ओर ले जाने के प्रयास को अनमुति दी. कई पश्चिमी देशों ने च्यांग काई शेक द्वारा स्थापित ताइवान के ‘रिपब्लिक आफ चाइना’ को चीन की एकमात्र वैध सरकार के रूप में मान्यता दी थी . लेकिन 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने ताइवान की मान्यता रद्द करके कम्युनिस्ट चीन को चीन के रूप में मान्यता दे दी. उसके बाद से अब तक ताइवान को मान्यता देने वाले देशों की संख्या घटते घटते महज 15 रह गई है. ताइवान को सबसे ज़्यादा लातिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों से समर्थन मिला है.
विश्व अर्थव्यवस्था में ताइवान कितना महत्व ?
‘ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी‘ जिन्हें संक्षेप में टीएसएमसी कहते हैं, वो अकेले ही दुनिया के आधे से अधिक चिप बाजार पर नियंत्रण रखती है. जनवरी से दिसंबर 2021 के बीच टीएसएमसी ने क़रीब 53 अरब डालर की आय अर्जित की. यदि ताइवान पर चीन का नियंत्रण हो जाए, तो दुनिया के इस अहम उद्योग पर चीन का कंट्रोल हो जाएगा. चिप और सेमीकंडक्टर बनाने में चीन पश्चिमी देशों से पीछे है. एक अनुमान है कि पश्चिमी देशों को पकड़ने में चीन को क़रीब 20 साल लगेंगे. चीन और अमेरिका इन तकनीकों को डेवलप करने में एक दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं. यदि यह उद्योग चीन के पास चला जाए तो पश्चिमी देशों की चिप और सेमीकंडक्टर तक पहुंच बाधित हो जाएगी. इससे इनकी क़ीमतें काफ़ी बढ़ जाएंगी.
ताइवान, चीन और अमरीका के बीच हमेशा से एक मुद्दा बना रहा है और आगे भी बना रहेगा. हालांकि सवाल यह भी है कि अगर चीन नाराज़ हुआ तो अमरीका पूरी तरह से उसके लिए खड़ा होगा या नहीं. यूक्रेन के मुद्दे को देखते हुए नहीं लगता की अमरीका कोई जोखिम लेने वाला है.