इस लेख में आप पढ़ेंगे : राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline) – UPSC
इसे संपत्ति मुद्रीकरण या एसेट मोनेटाइज़ेशन भी कहा जाता है। संपत्ति मुद्रीकरण का मतलब सरकारी संपत्तियों के मूल्यों को अनलॉक करके सरकार के लिए राजस्व के नए सूत्रों का निर्माण करना है। इसमें सरकार अपनी संपत्तियों को बेचने के बजाय इन्हें निजी कंपनियों को एक निश्चित अवधि के लिए लीज़ पर देती है। सरकार ऐसी संपत्तियों को लीज़ पर देकर अगले चार सालों में 6 लाख करोड़ रुपए कमाना चाहती है।
इस योजना की मुख्य विशेषता होंगी –
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना के तहत भूमि का मुद्रीकरण नहीं किया जाएगा, केवल ब्राउनफ़ील्ड संपत्ति का मुद्रीकरण किया जाएगा।
- मुद्रीकृत संपत्तियों की मिल्कियत सरकार के पास रहेगी, तय समय के भीतर उक्त संपत्ति को सरकार को वापस करना अनिवार्य होगा। एसेट मोनेटाइज़ेशन की अवधि 25 साल की होगी। इसके बाद प्राइवेट कंपनियों को सरकारी संपत्ति वापस करनी पड़ेगी। सरकार संपत्ति बेच नहीं रही है, बल्कि केवल कैश कमाने के लिए उन्हें पट्टे पर दे रही है, जो भारत के इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास की कोशिशों को ऊर्जा देने के लिए आवश्यक है।
- 2022 के अंत तक सकल घरेलू उत्पाद का 25% योगदान मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर देगा, जो बुनियादी ढाँचे पर ख़र्च से प्रेरित है. इसका अर्थ है कि मूल्य को अनलॉक करने के लिए कम उपयोग की गई संपत्ति का मुद्रीकरण करना चाहिए।
- एनएमपी सरकारी नियंत्रण को छोड़े बिना निजी भागीदारी को शामिल करके भारत के बुनियादी ढाँचे को वास्तव में विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है।
इस योजना को सरकारी थिंक टैंक ‘नीति आयोग’ ने तैयार किया है योजना का प्रारूप “न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन” को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है। कुछ विशेषज्ञों को यह भी डर है कि ये क्रोनी कैपिटलिज्म या एक-दो ख़ास कंपनियों का एकाधिकार न बन कर रह जाए। इस योजना का समर्थन करने वाले भी इस बात से सहमत हैं कि देश की कुछ गिनी-चुनी कंपनियों के पास ही इतनी पूँजी है कि वो सरकारी संस्थाओं को 25 सालों के लिए पट्टे पर ले सकें।
आखिर संपत्ति मुद्रीकरण, निजीकरण और विनिवेश के बीच अंतर क्या है?
महामारी का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर जारी है। इसे और पैसों की ज़रूरत है. केंद्रीय सरकार की कमाई के कुछ ही साधन उपलब्ध हैं, जिनमें इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, एक्साइज ड्यूटी और जीएसटी ख़ास हैं। कमाई का एक दूसरा बड़ा साधन है सरकारी कंपनियों और संस्थाओं का निजीकरण और विनवेश। निजीकरण में सरकार माइनॉरिटी भागीदार बन कर रह जाती है, जिसके कारण कंपनी का मैनेजमेंट ख़रीदार कंपनी के हाथों में चला जाता है। विनिवेश में सरकार मेजॉरिटी स्टेकहोल्डर बनी रहती है, जिसके कारण कंपनी का मैनेजमेंट सरकार के हाथ में ही रहता है। सरकारी एयरलाइंस ‘एयर इंडिया’ का उदाहरण लें। इसे बेच कर सरकार तीन तरीक़ों से पैसे कमा सकती है: 100 प्रतिशत बिक्री; 51 प्रतिशत या इससे अधिक शेयर की बिक्री; 49 प्रतिशत या इससे कम का सेल। पहले विकल्प में सरकार एयर इंडिया के मैनेजमेंट और मिल्कियत से बिल्कुल बाहर; दूसरे विकल्प में सरकार मेजॉरिटी शेयर बेचकर एयर इंडिया के मैनेजमेंट से हाथ धो बैठती है और तीसरी सूरत में सरकार माइनॉरिटी शेयर बेचकर एयर इंडिया के मैनेजमेंट को अपने हाथों में रखती है।
तो सवाल ये ही कि सरकार निजीकरण और विनिवेश के ज़रिए पैसे क्यों नहीं कमा रही है? दरअसल सरकार विनिवेश और निजीकरण के बड़े लक्ष्य तो रखती है, लेकिन इसमें पिछले कुछ सालों से बड़ी नाकामी मिल रही है। मिसाल के तौर पर, 2020-21 वित्त वर्ष में सरकार का लक्ष्य 2.1 लाख करोड़ रुपए था, लेकिन 21,300 करोड़ रुपए का ही विनिवेश हो सका। एयर इंडिया की कहानी और भी दयनीय है। पिछले कुछ सालों से सरकार इसे पूरी तरह से बेचना चाह रही है लेकिन इसका कोई ख़रीदार नहीं मिल सका है। इसकी ख़ास वजह है एयर इंडिया पर क़र्ज़ों का बोझ और इसका घाटे में चलना। देश की एयरलाइंस को वित्त वर्ष 2020-21 में 15,086.3 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ, जिसमें एयर इंडिया को 4,700 करोड़ रुपये का घाटा शामिल था। मजबूरी में सरकार इसके क़र्ज़ों को अदा करती आ रही है, जिससे सरकारी ख़ज़ाने पर असर पड़ता है। सवाल यह भी उठता है की अगर निजीकरण और विनिवेश में निजी कंपनियाँ दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, तो एसेट मोनेटाइज़ेशन के ज़रिए सरकार उन्हें कैसे लुभा सकेगी और 2025 तक अपना 6 लाख करोड़ रुपए का लक्ष्य कैसे पूरा कर सकेगी?
एसेट मोनेटाइज़ेशन कोई नया आइडिया नहीं है. सरकार के पहले की घोषित कुछ योजनाएँ इस नई प्रक्रिया में शामिल की गई हैं। उदाहरण के तौर पर पिछले साल एक जुलाई को रेल मंत्रालय ने घोषणा की थी कि 151 ट्रेनों का संचालन निजी क्षेत्रों की ओर से किया जाएगा।निजी कंपनियों ने इसका आम तौर से स्वागत किया है। इसकी सफलता को देखने के लिए कम से कम योजना के पहले साल तक इंतज़ार करना उचित होगा।