इस लेख में आप पढ़ेंगे: भारत – अफगानिस्तान संबंध (Moscow Format)- UPSC
हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान पर सुरक्षा वार्ता का पांचवा संस्करण मास्को में सम्पन्न हुआ। बैठक में भारत और मेज़बान देश रूस के प्रतिनिधियों के अलावा ईरान, कज़ाख़स्तान, कीर्गिस्तान, चीन, तज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान का पड़ोसी देश पाकिस्तान इस बैठक में शामिल नहीं हुआ।
हो सकता है इसके पीछे की वजह ‘भारत’ का इसमें शामिल होना रहा हो। यह वार्ता मॉस्को फॉर्मेट पर हो रही है। अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर चर्चा के लिए साल 2017 में ‘मॉस्को फॉर्मेट’ की शुरुआत हुई थी। मास्को प्रारूप (Format) अफगानिस्तान पर कई संवाद प्लेटफार्मों में से एक है जो काबुल पर तालिबान के अधिग्रहण से पहले शुरू हुआ था। इस क्षेत्रीय चर्चा में छह देश – रूस, अफ़ग़ानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत शामिल थे इनके अलावा असमें कज़ाख़्स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान भी शामिल किया गया है। इसका मक़सद क़ाबुल में मौजूद अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के नेताओं के बीच बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना और अफ़ग़ानिस्तान में शांति कायम करना था।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद भी भारत ने धीरे-धीरे संपर्क सही दिशा में ले जाने के प्रयास किए हैं। भारत ने अब तक अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, फिर भी मानवीय आधार पर भारत ने अफ़गानिस्तान को सहायता देने में कोई कमी नहीं की है। इस साल के बजट में अफ़ग़ानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपये के सहायता पैकेज का प्रावधान किया गया है, जिसका तालिबान सरकार ने स्वागत भी किया है। अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा स्थिति भारत के लिए बेहद अहम हैं । मॉस्को में हुई चर्चा में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार और आतंकवाद से लड़ने के लिए सामूहिक प्रयासों की बात को दोहराया है। दरसल भारत चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी संगठनों का जो जमावड़ा रहा है वो ख़त्म हो और पाकिस्तान की सरपरस्ती में वहां जो आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, वो भारत के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियां न चलाएं।
मॉस्को में आयोजित वार्ता सुरक्षा पर केंद्रित है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई। वहां अब भी शासन का ढांचा मजबूत नहीं है। ऐसे में इसका फ़ायदा उठाकर अल-क़ायदा और दूसरे आतंकवादी संगठन मज़बूत हो सकते हैं। हालाँकि अफ़ग़ानिस्तान पर हो रही इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान का प्रतिनिधित्व न होना बैठक की सफलता पर प्रश्न चिन्ह अवश्य खड़ा करता है। हो सकता है अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार को अभी अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है और इस वजह से उनको आमंत्रित नहीं किया गया हो। भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान का भू -राजनैतिक महत्व हमेशा से रहा है। तालिबान सरकार के साथ पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं है, जिसका भारत को लाभ उठाना चाहिए। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं में निवेश किया है जिनमें, स्कूल, अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, बच्चों के होस्टल और पुल शामिल हैं। यहां तक कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में गणतंत्र की निशानी के तौर पर खड़ा संसद भवन, सलमा बांध और ज़रांज-देलाराम हाइवे में भी भारी निवेश किया है।