इस लेख में आप पढ़ेंगे : लक्षद्वीप में नए कानूनों को लेकर जन-असंतोष – UPSC
देश के सबसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश में इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच प्रशासन द्वारा लाए गए चार अधिनियमों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे है। सवाल यह उठता है कि ये नियम-कानून कहीं लक्षद्वीप की अनूठी संस्कृति और पारिस्थितिकी में दखल तो नहीं है। यहाँ इन चारो अधिनियमों और अध्यादेशों का मुल्यांकन करना ज़रूरी है-
(1) गैर-सामाजिक गतिविधियों को रोकने का अधिनियम 2021 –
28 जनवरी को पेश किये गए इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य लक्षद्वीप में आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाना है। इस कानून की धारा 3 के तहत प्रशसन को यह अधिकार होगा की प्रशासन शक के आधार पर किसी व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है। धारा 13 के तहत उसकी हिरासत का सार्वजनिक तौर पर खुलासा किए बगैर उसे एक साल तक हिरासत में रखा जा सकेगा। इस कानून की धारा 8 के तहत प्रशासन एक सप्ताह के अंदर उस व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने की वजहों के बारे में स्थिति स्प्ष्ट करेगा लेकिन वह उन तथ्यों को सामने नहीं लाएगा, जिन्हें छिपाना वह जरूरी समझता है।
दरअसल इस तरह के नियम वहां लागु करने का औचित्य समझ से परे है जहाँ अपराध की दर देश में सबसे कम है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2019 में लक्षद्वीप में हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार या डकैती का एक भी केस दर्ज नहीं किया गया था।लोगो में आशंका है कि क्या गारंटी है कि इस प्रकार के कानून का दुरूपयोग असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए नहीं किया जायेगा?
(2) लक्षद्वीप पशु संरक्षण अधिनियम 2021 –
इस कानून के तहत “गोमांस और उसके उत्पादों के खरीदने और बेचने” पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। किसी व्यक्ति को इसका दोषी पाया जाने पर उसे अधिकतम दस साल की और कम से कम सात साल की सजा हो सकेगी। साथ ही उसे कम से कम एक लाख और अधिकतम पांच लाख रुपए का जुर्माना भी देना पड़ेगा। 2011 की जनगणना के मुताबिक, लक्षद्वीप की 96.58 फीसद आबादी मुस्लिम है। ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है की क्या मुसलमानो को ध्यान में रखते हुए यह कानून लाया गया है?
(3) लक्षद्वीप पंचायत अधिनियम, 2021 –
इस कानून के अनुसार, दो बच्चों से ज्यादा वाला कोई व्यक्ति यहां ग्राम पंचायत चुनावों में भाग नहीं ले सकेगा। लक्षद्वीप में केवल एक जिला पंचायत और दस ग्राम पंचायतें हैं और यहां आबादी के बढ़ने की दर तेजी से कम हो रही है। 2001 में यह दर 17.19 थी, जो 2011 में घटकर 6.1 रह गई थी। इस हिसाब से देखे तो यहां इस तरह के अधिनियम की कोई जरूरत नहीं थी।
(4) लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2021 –
इस कानून के अनुसार “प्राधिकरण को जमीन का विस्तार करने, जमीन के इस्तेमाल पर नियंत्रण और जमीन पर कब्जे” का अधिकार होगा। प्राधिकरण को अत्याधिक प्रदान की गयी शक्ति को भी लोग संदेह की दृष्टि से देख रहे है। वैसे भी इस द्वीप के विकास के लिए जब 2015 से इंटीग्रेटेड आइलैंडस मैनेजमेंट प्लान यानी आईआईएमपी लागु किया गया था तो ऐसे में इस नए कानून का कोई औचित्य नहीं था।
नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्ययनों से साबित हुआ है कि पिछले दो दशकों में पर्यावरण से जुड़े दुष्प्रभावों ने लक्षद्वीप के प्रवालद्वीपों को कमजोर किया है। इससे सवाल उठता है कि विकास का नया ढांचा स्थानीय आबादी के लिए कहीं नुकसानदायक तो नहीं होगा। जिस प्रकार से प्रशासन स्थानीय लोगो को भरोसे में लिए बिना एक पक्षीय योजनाएं लागु करने के लिए प्रयत्नशील है उससे लोगो में कहीं न कहीं आक्रोश की भावना बढ़ रही हैं।