एक देश, एक चुनाव (One Nation, One Election) कितना आसान ,कितना मुश्किल – UPSC

एक देश, एक चुनाव (One Nation, One Election) कितना आसान ,कितना मुश्किल – UPSC

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एक देश, एक चुनाव कोई आज का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसकी कोशिश 1983 से ही शुरू हो गई थी. दरसल आज़ादी के बाद पहले चुनाव एक साथ हुए थे. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे. 1983 में भारतीय चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव सरकार को दिया था, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया. इसी प्रकार 1999 में लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव कराए जाने का सुझाव दिया था. हाल ही में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिए एक समिति गठित की है.

यह क्यों जरूरी है –

  • बारी-बारी होने वाले चुनावों से न सिर्फ़ मानव संसाधन पर बोझ बढ़ता है, बल्कि आचार संहिता लागू होने से विकास की प्रक्रिया भी बाधित होती है.
  • चुनावों में ब्लैक मनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है और अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इसमें काफ़ी कमी आएगी.
  • पार्टियों पर सबसे बड़ा बोझ इलेक्शन फ़ंड का होता है. ऐसे में छोटी पार्टियों को इसका फायदा मिल सकता है क्योंकि विधानसभा और लोकसभा के लिए अलग अलग चुनाव प्रचार नहीं करना पड़ेगा.
  • चुनाव खर्च का बोझ कम होगा, समय कम ज़ाया होगा और पार्टियों और उम्मीदवारों पर खर्च का दबाव भी कम होगा.इसमें मुश्किल क्या है –

इसमें मुश्किल क्या है –

  • संविधान में संशोधन करने के लिए दोनों सदनों में विशेष बहुमत के साथ -साथ कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं में इसे पास भी होना चाहिए. आधे राज्य आसानी से सहमत हो जायेगे इसकी गुंजाइश कम ही लगती है.
  • कुछ राज्य इसे संघीय ढांचे पर प्रहार मानते हुए शायद ही इसका समर्थन करे.
  • अगर एक साथ चुनाव कराए जाने पर सहमति बनती है तो बड़े पैमाने पर संसाधन तैनात करने की चुनौती पूरी करनी होगी.
  • देश में कई हिस्से बहुत ही संवेदनशील हैं जहां अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत होगी.
  • एक राष्ट्र एक चुनाव की प्रक्रिया से प्रतिनिधियों पर जिम्मेदारी कम होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

दुनिया में बहुत कम देश ऐसे हैं जहां स्थानीय चुनावों को आम चुनावों के साथ ही कराया जाता है. बेल्जियम, स्वीडन और दक्षिण अफ़्रीका में एक साथ चुनाव कराये जाते है. इनके अलावा एक साथ चुनाव कराने का अनुभव भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल के पास भी है. वहां 2015 में जब नया संविधान स्वीकार किया गया, तो इसके बाद अगस्त 2017 में पहला चुनाव एक साथ कराया गया था.