अमृत काल बनाम न्यू इंडिया – UPSC

अमृत काल बनाम न्यू इंडिया – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे: अमृत काल बनाम न्यू इंडिया – UPSC

बात 2014-2015 की रही होगी जब एक सपना देखा गया, सपना था 2022 तक “नए भारत” का निर्माण । यह लक्ष्य भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के मील के पत्थर के रूप में चिन्हित था। इसे प्राप्त करने के लिए नीति आयोग ने 2018 में “स्ट्रेटेजी फॉर न्यू इंडिया @75” की घोषणा की। पंचवर्षीय योजना को खत्म करने के बाद नीति आयोग का यह देश के लिए एकमात्र विजन दस्तावेज था, जिसकी समयसीमा पिछला साल थी। 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने से लेकर महिलाओं के लिए रोजगार पैदा करने, किसानों की आय दोगुनी करने और गरीबी उन्मूलन के अलावा इस विजन में लगभग 41 लक्ष्य शामिल थे, जिनमें से कम से कम 17 की समयसीमा 2022 थी।

2022-2023 के बजट भाषण के वक्त उन लोगो को काफी उम्मीद थी जो उस सपने के साथ जी रहे थे और सरकार पर आँख मूंद कर भरोसा करते रहे है पर सरकार ने उन वादो की प्रगति पर प्रकाश डालना तो दूर विकास लक्ष्यों में “नए भारत” का जिक्र तक नहीं किया। निसंदेह कोविड महामारी ने न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया को पीछे धकेलने का काम किया है। फिर भी सवाल उठना लाजमी है कि उस नए भारत के सपने को भूलकर क्या सीधे “अमृत काल” के कल्पना लोक में खो जाएं।

आजकल जिधर देखो केवल और केवल “अमृत काल” की बात हो रही है अब “अमृत काल” लोगो के लिए विकास का नया दृष्टिकोण बन गया है जिसे मापने के लिए न तो कोई पैमाना है और लक्ष्य भी ऐसा जो 25 वर्ष दूर हो। देश 2020 से पहले करीब तीन साल से लगातार बेरोजगारी बढ़ने के साथ आर्थिक मंदी का सामना कर रहा था। महामारी ने इसे और प्रबल किया। हम अभी तक विकास के उस स्तर पर भी नहीं हैं, जो महामारी से पहला था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के नवंबर, 2022 के आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगारी लगभग 8 प्रतिशत बनी हुई है। यह श्रम बल में शामिल लाखों लोगों के लिए इतना निराशाजनक है कि उन्होंने काम खोजना तक बंद कर दिया है। आजीविका के अंतिम विकल्प के तौर पर कृषि पर निर्भरता बहुत है, भले ही उससे बेहतर जिंदगी की कोई गुंजाइश न बची हो। बढ़ती महंगाई से गरीब आदमी पस्त हो चूका है। भारत के लोग कितने आशावादी है की अब नए भारत से “अमृतकाल” के सपने में जीने का आदि हो जायेंगे।

जब राजनीतिक आख्यान पौराणिक कथाओं सरीखे हो जाते हैं तो हम परियों के लोक में पहुंच जाते हैं, जहां हम सभी में खुद को देवीय मानने की भ्रामक भावना विकसित की जाती है । आधुनिक चुनावी प्रणाली में इस भावना को अभिव्यक्त करने के लिए मंदिर में घंटी की तरह वोटिंग मशीन का बटन दबाना होता है।