इस लेख में आप पढ़ेंगे: पोषण का बदलता परिदृश्य: Functional Foods और Smart Proteins – UPSC/ GS 3 Food and technology / Functional foods & Smart Proteins / GS 2 Issues related to poverty and hunger
भोजन और पोषण के साथ समाज का संबंध लगातार विकसित हो रहा है। अगला बदलाव कार्यात्मक खाद्य पदार्थों (Functional Foods) और स्मार्ट प्रोटीन (Smart Proteins) से जुड़ा है।
कार्यात्मक खाद्य पदार्थ (Functional Foods) क्या हैं?
कार्यात्मक खाद्य पदार्थ ऐसे संपन्न खाद्य पदार्थ होते हैं, जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं या बीमारियों से बचाव करते हैं, जैसे विटामिन युक्त चावल या ओमेगा-3 युक्त दूध। कार्यात्मक खाद्य पदार्थ कई तकनीकों का लाभ उठाते हैं जैसे न्यूट्रीजीनोमिक्स (nutrigenomics = पोषण और जीन के बीच परस्पर क्रिया का अध्ययन), बायो-फोर्टिफिकेशन, 3डी फ़ूड प्रिंटिंग और बायोप्रोसेसिंग।
बायो-फोर्टिफिकेशन/ जैव-प्रबलीकरण, लोक स्वास्थ्य में सुधार हेतु चावल, गेहूँ और मक्का जैसी प्रमुख खाद्य फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाने की प्रक्रिया है। यह पारंपरिक पादप प्रजनन, कृषि पद्धतियों या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी जैसी विधियों के माध्यम से किया जाता है। इसमें पौधों की वृद्धि के दौरान ही आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों, जैसे लोहा, जस्ता और विटामिन ए, के स्तर को बढ़ाया जाता है। पारंपरिक सुदृढ़ीकरण के विपरीत, जैव-प्रबलीकरण कटाई से पहले ही फसलों में पोषक तत्व जोड़ देता है, जिससे यह विविध आहारों या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों तक सीमित पहुँच वाली आबादी तक पहुँचाया जा सकता है।
Smart Proteins
स्मार्ट प्रोटीन (Smart Proteins) जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्राप्त प्रोटीन होते हैं जिनका उद्देश्य पारंपरिक उत्पादन पर निर्भरता कम करना होता है। इनमें शामिल हैं:
- पादप-आधारित (plant-based) प्रोटीन = पशु मांस और डेयरी उत्पादों की नकल करके फलियों, अनाज या तिलहन से बनाए गए प्रोटीन;
- फर्मेंटेशन-आधारित प्रोटीन (Fermentation-based) = सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित;
- संवर्धित मांस (Cultivated meat) = बिना वध किए बायोरिएक्टर में उगाई गई पशु कोशिकाएँ/ animal cells।
भारत को इनकी आवश्यकता क्यों है?
भारत के पोषण परिदृश्य में अत्यधिक असमानता बनी हुई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-2021) से पता चलता है कि:
- 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित (Stunted), 32.1% कम वजन वाले (underweight) और 19.3% दुर्बल (wasted) हैं। स्टंटिंग की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी बच्चे की लंबाई उसकी उम्र के हिसाब से बहुत कम होती है, जो अक्सर लंबे समय तक कुपोषण या संक्रमण के कारण होता है।
- 15-49 वर्ष की आयु की 57% महिलाएँ एनीमिया से ग्रस्त हैं।
- हालाँकि वयस्कों में प्रोटीन का सेवन बेहतर हुआ है, फिर भी शहरी-ग्रामीण विभाजन बना हुआ है।
जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और परिवारों की आय बढ़ेगी, भोजन से सामाजिक अपेक्षाएँ केवल पेट भरने से बढ़कर वास्तव में पौष्टिक आहार की माँग में बदल जाएँगी। इस बदलाव के लिए भारत की नीति को खाद्य सुरक्षा से बढ़कर पोषण सुरक्षा की ओर पुनर्निर्देशित करने की आवश्यकता है, जिसमें स्वास्थ्य और विकासात्मक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन से भरपूर भोजन उपलब्ध कराया जाए।
आज भारत कहाँ खड़ा है?
हम प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित पोषण (Functional foods & Smart Proteins) के बदलते परिदृश्य में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सक्रिय भूमिका देख रहे हैं:
- भारत की BioE3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन पर विशेष जोर देती है।
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और इसके सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोगी जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council / BIRAC) ने इन क्षेत्रों में वित्त पोषण कार्यक्रम शुरू किए हैं।
- वैज्ञानिक कार्यात्मक खाद्य के क्षेत्र में जैव-फोर्टिफाइड फसलें विकसित कर रहे हैं जैसे कि जिंक-समृद्ध चावल (IIRR, हैदराबाद में विकसित) और लौह-समृद्ध बाजरा (ICRISAT से)।
- कई निजी कंपनियाँ – टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, ITC और मैरिको – फोर्टिफाइड खाद्य उत्पादों में निवेश कर रही हैं।
- स्मार्ट प्रोटीन पारिस्थितिकी तंत्र भी बढ़ रहा है। 2023 में, भारत भर में 70 से अधिक स्मार्ट प्रोटीन ब्रांडों द्वारा अनुमानित 377 उत्पाद (मांस, अंडे या डेयरी) बेचे जाएँगे। गुडडॉट, ब्लू ट्राइब फूड्स और ईवो फूड्स जैसे स्टार्टअप प्लांट-बेस्ड मीट और अंडे के विकल्पों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
- 2024 में, ज़ाइडस लाइफसाइंसेज ने स्टर्लिंग बायोटेक में 50% हिस्सेदारी खरीदकर किण्वन/fermentation-आधारित प्रोटीन क्षेत्र में प्रवेश किया।
- सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी को संवर्धित मांस (cultivated meat) पर शोध के लिए डीबीटी से ₹4.5 करोड़ का बड़ा अनुदान मिला है।
अन्य देशों का प्रदर्शन कैसा है?
1980 के दशक में, जापान पहला देश था जिसने कार्यात्मक खाद्य पदार्थों (Functional foods) की अवधारणा प्रस्तुत की और इसके नियमन के लिए एक ढाँचा तैयार किया। दूसरी ओर, स्मार्ट प्रोटीन (Smart Proteins) खाद्य पदार्थों की एक नई श्रेणी है। सिंगापुर 2020 में संवर्धित चिकन (cultivated chicken) की व्यावसायिक बिक्री को मंज़ूरी देने वाला पहला देश बना। चीन ने अपने खाद्य सुरक्षा और नवाचार एजेंडे के तहत वैकल्पिक प्रोटीन को प्राथमिकता दी है। यूरोपीय संघ अपनी “फार्म टू फोर्क” रणनीति के माध्यम से सतत प्रोटीन उत्पादन में भारी निवेश कर रहा है।
भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- इस पोषण परिवर्तन को स्थायित्व (sustainability) के साथ संतुलित करना भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी। भारत को पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ाए बिना या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गहराए बिना खाद्य उत्पादन प्रणालियों का विस्तार करना होगा। इसलिए, एक लचीली, पोषक तत्वों से भरपूर और जलवायु के प्रति जागरूक खाद्य प्रणाली की अनिवार्यता होगी।
- कार्यात्मक खाद्य पदार्थ (Functional foods) और स्मार्ट प्रोटीन (Smart Proteins) दोनों पर नियामक अस्पष्टता बनी हुई है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने अभी तक संवर्धित मांस या किण्वित प्रोटीन जैसे नए खाद्य पदार्थों पर निश्चित दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं। बड़े पैमाने पर किण्वन, गुणवत्ता प्रमाणन और उपभोक्ता परीक्षण के लिए बुनियादी ढाँचा सीमित बना हुआ है।
- भारत या तो नवाचार में पिछड़ सकता है या फिर असत्यापित, गलत लेबल वाले उत्पादों की बाढ़ का सामना कर सकता है।
- कृषि क्षेत्र में अकुशल या अल्पकुशल कार्यबल (unskilled & underskilled workforce) इस परिवर्तन के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
- जैव-विनिर्माण की ओर संक्रमण (transition) का कार्यान्वयन यदि समावेशी रूप से नहीं किया गया तो बाजार की शक्ति कुछ बड़ी कंपनियों के बीच केंद्रित हो सकती है।
- “प्रयोगशाला-निर्मित” भोजन के प्रति संदेह और नकारात्मक सार्वजनिक धारणा एक और चुनौती पेश करती है।
आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?
स्वास्थ्य के मोर्चे पर, कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन (Functional foods & Smart Proteins) भारत की पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता होंगे। आर्थिक मोर्चे पर, वैश्विक पादप-आधारित/ plant-based खाद्य बाजार 2030 तक 85 अरब डॉलर और 240 अरब डॉलर के बीच होने का अनुमान है। भारत, अपने मजबूत कृषि आधार और बढ़ते जैव प्रौद्योगिकी उद्योग के साथ, एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता की भूमिका निभा सकता है। यदि ऐसा होता है, तो ये उद्योग भारत में कृषि, विनिर्माण और रसद (logistics) क्षेत्र में हज़ारों नौकरियाँ पैदा कर सकते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से, जैव-आधारित प्रोटीन उत्पादन की ओर रुख करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि क्षरण और जल संकट में भी कमी आ सकती है। इसलिए,
- FSSAI के तहत नवीन खाद्य पदार्थों के लिए एक राष्ट्रीय नियामक ढाँचे को कार्यात्मक और वैकल्पिक प्रोटीन उत्पादों की परिभाषाओं, सुरक्षा मूल्यांकन और लेबलिंग पर स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए।
- सुसंगत नीतिगत समर्थन सुनिश्चित करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय भी आवश्यक है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैव-विनिर्माण अवसंरचना के विस्तार और परिशुद्ध किण्वन जैसी महत्वपूर्ण तकनीकों के स्वदेशीकरण में मदद कर सकती है।
- जैव-विनिर्माण की ओर संक्रमण के लिए बड़े पैमाने पर कार्यबल के कौशल विकास की आवश्यकता होगी।
- “प्रयोगशाला-निर्मित” भोजन के प्रति संदेह को केवल पारदर्शी संचार और सार्वजनिक विश्वास के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है।
- और अंत में, जैव प्रौद्योगिकी के लाभों को पूरे समाज तक पहुँचाने के लिए सार्वजनिक शिक्षा और किसानों को नई मूल्य श्रृंखलाओं में शामिल करना आवश्यक होगा।

