इस लेख में आप पढ़ेंगे: क्या अमेरिका संरक्षणवाद के रास्ते पर निकल पड़ा है? UPSC
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ नीति को लेकर जो भूचाल पूरी दुनिया में आया हुआ है, उसके कल क्या नतीजे होंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक बात स्पष्ट दिखाई देती है कि जिस वैश्वीकरण के रथ पर सवार होकर अमेरिका ने नाम ,शोहरत ,दौलत और रुतबा कमाया है, आज वह उसके गले की फास बन चूका है। अब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को वापस 1913 से पहले के उस संरक्षणवादी दौर में ले जाना जाना चाहते है, जहाँ टैरिफ़ के ज़रिए उसने ख़ूब धन कमाया था और ऊंचे टैरिफ़ ने अमेरिका को पहली बार ‘महान’ बनाया था।
वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार की बुनियाद में 19वीं सदी के ब्रिटिश अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो का वह सिद्धांत है, जो ‘तुलनात्मक लाभ’ का सिद्धांत कहलाता है। इसका मूलसार यही है कि अलग-अलग देश अपने प्राकृतिक संसाधनों और आबादी के कौशल के आधार पर अलग-अलग वस्तुएं बनाने में माहिर होते हैं। यदि हर व्यक्ति उस काम में विशेषज्ञता हासिल कर ले, जिसमें वो अच्छा हो तो मुक्त व्यापर का माहौल अपने आप तैयार हो जायेगा। ज़्यादातर दुनिया अभी भी ‘तुलनात्मक लाभ’ में यकीन करती है लेकिन, अमेरिका कभी भी पूरी तरह से इस बात पर सहमत नहीं हुआ। अमेरिका के मन में इसे लेकर जो भी अनिच्छा थी, वो कभी भी ख़त्म नहीं हुई।
दरअसल, अलग-अलग देश, अलग-अलग उत्पाद बनाने में अच्छे होते हैं, और उनके पास अलग-अलग प्राकृतिक और मानव संसाधन हैं। यही व्यापार का आधार है। यदि यही तर्क केवल सेवाओं के व्यापार के मामले में लागू किया जाए, तो अमेरिका के पास इस मामले में 280 बिलियन डॉलर का सरप्लस है। जबकि सेवा व्यापार को अमेरिका तमाम तरह की गणनाओं से बाहर रखता है। अमेरिका के लिए डेविड रिकार्डो नहीं बल्कि डेविड ऑटोर महत्व रखते हैं, जिन्होंने ‘चीन शॉक’ शब्द गढ़ा है। 2001 में, जब दुनिया 9/11 की घटना से विचलित थी, तब चीन विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया था। इसके बाद अमेरिकी बाज़ार में चीन को अपेक्षाकृत स्वतंत्र पहुंच मिलनी शुरू हो गई। यहीं से वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव शुरू हुए। अमेरिका में लाइफ स्टाइल, उन्नति, मुनाफ़ा और शेयर बाज़ार में तेज़ी आ गई, क्योंकि चीन के वर्क फ़ोर्स ने ग्रामीण इलाक़ों से तटीय कारखानों की ओर पलायन करना शुरू किया, ताकि अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए वे सस्ते दामों पर निर्यात करने के लिए उत्पाद बना सकें। यह ‘तुलनात्मक लाभ’ की कार्यप्रणाली का एक बेहतरीन उदाहरण था। चीन ने ट्रिलियन डॉलरों की कमाई की, इनमें से ज़्यादातर हिस्सा अमेरिका में सरकारी बॉन्ड के तौर पर फिर से निवेश किया गया। इससे ब्याज़ दरों को कम रखने में भी मदद मिली। ऑटोर की गणना के मुताबिक़, साल 2011 तक इस “चीनी शॉक” के कारण अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 लाख नौकरियां और कुल मिलाकर 24 लाख नौकरियां खत्म हो गईं।
अब राष्ट्रपति ट्रंप को भरोसा है कि टैरिफ नीति से पूरे अमेरिका में नौकरियां वापस आएंगी। विदेशी कंपनियों को राष्ट्रपति का स्पष्ट संदेश है कि अपनी फैक्ट्रियों को अमेरिका में लगाकर टैरिफ़ से बचें। राष्ट्रपति ट्रंप का पिछली आधी सदी के मुक्त व्यापार को अमेरिका में लूटपाट करने वाला बताना सही तस्वीर पेश नहीं करता है। अमेरिकी सेवा क्षेत्र ने खूब तरक्की की है। इसने वॉल स्ट्रीट और सिलिकॉन वैली से दुनिया पर अपना दबदबा बनाया है। अमेरिकी उपभोक्ता ब्रांड्स ने चीन और पूर्वी एशिया तक फैली बेहतरीन सप्लाई चेन का इस्तेमाल कर अपने महत्वाकांक्षी अमेरिकी उत्पादों को हर जगह बेचकर खूब लाभ कमाया। अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने वास्तव में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। इसमें समस्या बस यह थी कि यह अलग-अलग सेक्टर्स के बीच समान रूप से नहीं बंटा था। अब जब अमेरिका अचानक संरक्षणवाद के झटके के साथ अपने मैन्युफैक्चरिंग को फिर से शुरू करने का विकल्प चुनता है, तो अन्य देश जिसने अमेरिका को अमीर बनाया है, उनके पास भी विकल्प है कि वे पूंजी और व्यापार के प्रवाह का समर्थन करें या न करें।