सहेल क्षेत्र क्या है?
लगभग 30 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले सहेल क्षेत्र में अफ्रीका महाद्वीप के मॉरिटेनिया, माली, नाइजर, चाड और बुर्किन फासो जैसे देश आते है। इन देशो में जहाँ एक ओर जिहादी ताकते अपना प्रभाव बढ़ाने में लगी हुई है तो दूसरी ओर ये अपनी घरेलु राजनीति से भी जूँझ रहे है। अप्रैल 2021 में चाड के राष्ट्रपति इदरीब डेबी विद्रोहियों के साथ संघर्ष में मारे गए थे जो जिहादी संगठनो के खिलाफ पश्चिमी देशो के सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाते थे। पिछले एक साल के भीतर माली में दो बार तख्ता-पलट के प्रयास किये जा चुके है जबकि बुर्किन फासो अल-क़ाएदा की आतंकी घटनाओ का शिकार रहा है।
अल-क़ाएदा और इस्लामिक स्टेट का गठजोड़
दरअसल अफ़ग़ानिस्तान में पराजित होने के पश्चात अल-क़ाएदा ने अफ्रीकी देशो में अपनी पैठ काफी पहले ही क़ायम कर ली थी और अब इराक व् सीरिया में परास्त होने के पश्चात इस्लामिक स्टेट ने भी इन देशो को अपना ठिकाना बनाया है। संभव है कि अल-क़ाएदा और इस्लामिक स्टेट ने उप-सहारा क्षेत्र में अपना एक गठजोड़ खड़ा कर लिया है जो अलग-अलग क्षेत्रो में अलग-अलग नामो से सक्रिय है जैसे कि माली, नाइजर व् बुर्किन फासो में यह इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा तो वहीँ चाड बेसिन में इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका के नाम से सक्रिय है।
उप-सहारा क्षेत्र में पश्चिमी देशो के प्रयास
जेहादी संगठनो की अफ्रीकी सहारा देशो में सक्रियता से पश्चिमी देश भी चिंतित है, उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इन् देशो में उत्पन्न होने वाला कोई भी संकट अफ्रीकी प्रवासियों को यूरोप की ओर पलायन के लिए बाध्य करेगा और इससे यूरोप के लिए नई समस्याएं उत्पन्न होंगी। अफ़्रीका के लिए सहेल का इलाक़ा यूरोप जाने के लिए बड़ी संख्या में प्रवासियों के लिए ट्रांज़िट रूट है। इसके साथ ही यह अवैध ड्रग्स, हथियार और जिहादियों का भी ट्रांज़िट रूट है।
उप-सहारा क्षेत्र में जिहादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक प्रयास किये जा रहे है। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के 14 हजार सैनिक सहेल क्षेत्र में तैनात है, इसके आलावा फ्रांस के द्वारा ऑपरेशन बरखाने के तहत करीब 5,100 सैनिक तैनात किये हुए है जबकि ब्रिटेन के भी 400 सैनिक इस क्षेत्र में सक्रिय है।
पश्चिमी सहारा क्षेत्र में अमेरिका के नेतृत्व में अफ्रीकन लायन मिशन के तहत 9 देशो के 7,000 सैनिक तैनात है। परन्तु अफ़ग़ानिस्तान के अनुभव से साफ़ है कि हथियारबंद सैनिक और लक्ष्य केंद्रित पश्चिमी हस्तक्षेप की भी एक हद है। अतिवादियों को हराने के लिए दो चीज़ें बहुत अहम हैं- सक्षम स्थानीय बल और लोगों का समर्थन।
इन देशो में स्थानीय सेना के प्रति लोगो का भरोसा बहुत कम है और जिस प्रकार से इन् देशो में राजनीतिक संकट की स्थिति बनी हुई है उससे चरमपंथी संगठनो को अपनी पैठ और अधिक मजबूत करने का अवसर मिला है। पश्चिमी देशो के अभियान इन् देशो में कभी लोकप्रिय नहीं रहे है और यहाँ विदेशी सैनिको के प्रति जनता अपना आक्रोश प्रकट करती रही है।
आखिर क्या समाधान हो सकता है?
कुल मिलकर इन देशो के हालत बहुत गंभीर है और पश्चिमी देशो को जिहादी ताकतों को रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। जो देश इन इलाक़ों के सैन्य अभियान में शामिल हैं उनके लिए भी कम अनिश्चितता नहीं है। जब तक सैन्य सहयोग का दायरा नहीं बढ़ता है और अभियान को आपसी सहयोग से बड़ा नहीं बनाया जाता है तब तक इस बात का ख़तरा बना रहेगा कि मिशन बिना किसी नतीजे पर पहुँचे ही ख़त्म हो जायेगा। पश्चिमी देशो का प्रयास होना चाहिए की उप-सहारा क्षेत्र में राजनीतिक पुनर्निर्माण की दिशा में भी एक रचनात्मक भूमिका निभाए क्योकि जब तक यहाँ राजनीतिक स्थिरता नहीं होगी, जिहादी ताकते अपने आधार को मजबूत करने में सफल रहेंगी। माली, चाड और बुर्किन फासो जैसे देशो में कुछ ऐसा ही देखा जा सकता है।