इस लेख में आप पढ़ेंगे: क्या भारतीय अर्थव्यवस्था हिन्दू विकास दर (Hindu Rate of Growth) की और बढ़ रही है ?
1950 से लेकर 1980 के दशक तक भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर चार फीसदी के निम्न स्तर पर रही थी, जिसे हिन्दू विकास दर की संज्ञा दी गई थी। इस शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले 1978 में भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्ण के द्वारा किया गया था। इस समय भी भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कमोवेश ऐसी ही बनी हुई है। NSO के अनुसार चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 4.4 फीसदी रह गई, जो दूसरी तिमाही में 6.3 फीसदी और पहली तिमाही में 13.2 फीसदी थी घटती वृद्धि दर के पीछे कई कारण उत्तरदायी माने जा सकते है –
- निजी क्षेत्र निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं है;
- ब्याज दरो में लगातार वृद्धि हो रही है;
- वैश्विक वृद्धि की सुस्त पड़ती रफ़्तार;
- विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट;
- निजी उपभोग व्यय में कमी.
इन सब परिस्थितियों में विकास दर आगामी वित्त वर्ष में 5 फिसदी रह जाये तो भी बड़ी बात होगी हालांकि NSO ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर 7 फिसदी पर रहने का अनुमान जताया है। मूडीज ने भी इस सुस्ती को अस्थायी माना है।
साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ था, उस समय देश की आर्थिक हालत काफी कमजोर थी। कृषि प्रधान देश में गरीबी व्यापक स्तर पर थी। इसके साथ ही ढांचागत सुविधाओ का अभाव था। इसके बाद के दशकों में देश की विकास दर काफी धीमी थी । देश की इकोनॉमी की इस धीमी रफ्तार को शब्दों में व्यक्त करने के लिए Hindu Growth Rate शब्द का इस्तेमाल किया गया।अब भी इस शब्द का उपयोग देश की निम्न ग्रोथ रेट की स्थिति को बयां करने के लिए अक्सर किया जाता है। हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ शब्दावली का आशय धर्म से नहीं बल्कि अर्थशास्त्र से है। हालांकि 25 साल तक सात प्रतिशत औसत आर्थिक वृद्धि दर शानदार है, फिर भी कुछ अर्थो में यह नयी ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ बन गयी है।