कोरोना महामारी की प्रथम लहर में जहाँ चीन से लेकर अमेरिका और यूरोप के देश असहाय नजर आ रहे थे और भारत जैसे-तैसे उस लहर से निकलने में सफल रहा वहीँ इस महामारी की दूसरी सुनामी से भारत पूरी तरह से घिरा हुआ है। सवाल यह उठता है की आखिर भारत इस सुनामी का केंद्र कैसे बन गया है? और इससे कैसे निकल पायेगा?
दरअसल इस सुनामी में घिरने के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी माने जा सकते हैं :-
- राजनीतिक गलियारों में कोरोना को हरा देने का ऐलान अक्टूबर-नवंबर से ही किया जाने लगा था। सितम्बर में जहाँ कोरोना के 90 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे थे, जनवरी-फरवरी में इन मामलो की संख्या 20 हजार से भी नीचे पहुँच गयी थी। साफ़ तौर पर देखा गया की लोग कोविड प्रोटोकॉल को भूल गए, लब्बोलुबाब कोरोना की दूसरी लहर को न तो सरकार भांप पाई और न ही आम लोगो को इसका अनुमान लग पाया। कुम्भ जैसे धार्मिक उत्सवों और चुनावी समर में सरकार और लोग भूल गए की महामारी कभी भी आपदा बनकर कहर बरपा सकती है और ऐसा ही हुआ।
- भारत में सार्वजानिक स्वास्थ का ढांचा हमेशा से ही टूटा हुआ था , निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को मिलाकर देखे तो पिछले 6 सालो में भारत का स्वास्थ पर खर्च अपनी GDP का 3.6 % है , जो BRICS देशो में सबसे कम है , जबकि इन् देशो में ब्राज़ील 9.2% , दक्षिण अफ्रीका 8.1%, रूस 5.3% और चीन अपनी GDP का 5 % स्वास्थ पर खर्च करता है , विकसित देशो में तो यह आंकड़ा बहुत ऊपर है , अमेरिका अपनी GDP का 16.9% और जर्मनी 11.2% खर्च करता है। चिंता की बात यह है की भारत में 10 हजार लोगो पर 10 से भी कम डॉक्टर उपलब्ध है।
- कोरोना वायरस के अधिक संक्रामक और जानलेवा वैरिएंट की पहचान के लिए ‘जीनोम सिक्वेंसिंग’ एक अहम कदम है इसके लिए वर्ष 2020 में इंडियन सार्स COV -2 जीनोमिक कंसोर्शिया (आईएनएसएसीओजी) का गठन किया गया था. इसके तहत देश के 10 प्रयोगशालाओं को शामिल किया गया, परन्तु इस समूह को निवेश पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है, भारत इस समय सभी नमूनों के केवल 1 % की सिक्वेंसिंग कर रहा है। जबकि ब्रिटेन महामारी के चरम के दिनों में 5-6 फ़ीसदी नमूनों की सिक्वेंसिंग कर रहा था।
- कोवीड से निपटने का सबसे अच्छा और प्रभावी विकल्प लोगो का जल्द से जल्द टीकाकरण करना था ताकि अधिकांश को अस्पताल की आवश्यकता ही न पड़ती , जुलाई 2021 तक करीब 30 करोड़ लोगो का टीकाकरण किया जाना था परन्तु वैक्सीन के इंतेज़ाम की पर्याप्त योजना के अभाव में ऐसा संभव नहीं दिखाई देता। देश की 140 करोड़ की आबादी में से अब तक महज 2.6 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन की दोनों खुराक लगाई गई है जबकि करीब 12.5 करोड़ लोगों को एक खुराक मिल सकी है। सरकार को 45 साल से ऊपर के सभी 44 करोड़ लोगों के टीकाकरण के लिए 61.5 करोड़ खुराक की आवश्यकता है, वहीं 18 से 44 साल के 62.2 करोड़ लोगों के लिए 120 करो़ड़ खुराकों की जरूरत है।
- देश में ऑक्सीजन की सप्लाई और रेमेडेसिविर जैसी दवाओं की किल्लत ने स्थिति को और अधिक भयावह बना दिया है, मांग में आई उछाल को पूरा करने के लिए देश में पर्याप्त ऑक्सीजन बनाई जा रही है लेकिन असली समस्या इसकी सप्लाई है , ऑक्सीजन की कमी के कारण कई रोगियों की मौत हो जाने के बाद एक राज्य से दूसरे राज्य में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलायी जा रही है उद्योगों में ऑक्सीजन के उपयोग को रोक दिया गया है। जबकि इसकी तैयारी दुनिया में आई पहली लहर के बाद ही कर ली जानी चाहिए थी, केरल राज्य इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जिसने अक्टूबर में ही दूसरी लहर के पुख्ता इंतजाम कर लिए थे यही कारण है की वहाँ न ऑक्सीजन की कमी उत्पन्न हुई और न ही दवाइयों की।
कितनी विडम्बना है की भारत को दुनिया में अपनी फार्मेसी के लिए जाना जाता है, फिर भी टीको और दवाइयों की कमी से जूंझना पड़ रहा है, अक्टूबर से लेकर मार्च तक हमारे पास पर्याप्त समय था और कोरोना की पहली लहर हमारे लिए एक अलार्म की तरह थी , यदि सरकारे और प्रशासन केंद्र व् राज्य स्तर पर समन्वय के साथ कोई रोडमैप तैयार करते तो इस त्रासदी से बचा जा सकता था, नए म्युटेंट से निपटने के लिए वैक्सीन को अपडेट करना भी जरुरी होता है और जिस प्रकार से यह वायरस तेजी से अपनी प्रकृति को बदल रहा है ऐसे में वैज्ञानिको के सम्मुख भी बड़ी चुनौती है। कोवीड प्रोटोकॉल का कितना गम्भीरता से पालन किया गया है ये चुनावी रैलियों और धार्मिक आयोजनों में साफ देखा जा सकता था, इस चुनावी समर ने वाइरस के वरिएन्टो को सुदूर ग्रामीण अंचलो तक पहुँचाने का काम किया है। ऐसे में इस महामारी से निपटना और भी चुनौतीपूर्ण हो चूका है।
कोरोना वायरस के वैरिएंट
जब कोई वायरस मनुष्य के शरीर में अपनी कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाने लगता है तो उस प्रक्रिया को हम रेप्लिकेशन (प्रतिकृति) बनाना कहते है फिर यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने लगता है और इस तरह से इसका विकास होता रहता है और जब विकास की इस प्रक्रिया में वायरस अपने आपको बदलने लगता है तो उसे विज्ञानं की भाषा में ‘म्युटेशन’ कहा जाता है। अलग-अलग हो रहे ये म्युटेशन दो-तीन महीने की अवधि में एक वैरिएंट बन जाते है जब से कोरोना वायरस अस्तित्व में आया है इसके सैकड़ो-हजारो म्युटेशन हुए है और उनमे से कुछ वैरिएंट बन गए है। आज दुनिया में कोरोना वायरस के सैकड़ो वैरिएंट है जिनमे से कुछ अत्यंत गंभीर है जैसे की दक्षिण अफ्रीका वैरिएंट, ब्राज़ील वैरिएंट, ब्रिटिश वैरिएंट और महाराष्ट्र वैरिएंट। ब्रिटिश वैरिएंट के 23 म्युटेशन हो चुके है और महाराष्ट्र वैरिएंट के 15 म्युटेशन है। महाराष्ट्र वैरिएंट ‘डबल म्यूटेंट’ के नाम से जाना जा रहा है और महाराष्ट्र में 50 – 60% संक्रमण के मामलो के लिए यही जिम्मेदार है। गुजरात और पंजाब में ब्रिटिश वैरिएंट पाया गया है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फैले कोरोना वैरिएंट को N440K का नाम दिया गया है। जानकारों का यह मानना है की महराष्ट्र का डबल म्यूटेंट वैरिएंट और ब्रिटिश वैरिएंट कोरोना के N440K वैरिएंट से अधिक तेजी से फैलते है। कोरोना वायरस के दो म्यूटेशन L452R और E484Q की खूबियां महाराष्ट्र वैरिएंट में उच्च स्तर पर मौजूद है। महाराष्ट्र के दोनों ही म्यूटेंट ने इंसानी शरीर से अपना जुड़ाव मजबूत कर लिया है. इस वजह से संक्रमित लोगों में इसके गंभीर लक्षण देखने को मिल रहे हैं।
कोरोना की दूसरी लहर में वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड (संक्रमण के लक्षण सामने आने में लगने वाला समय) ज़बरदस्त रूप से कम हो गया है. अतीत में सात दिनों में इसके लक्षण सामने आते थे. अब इसमें केवल तीन दिन का समय लग रहा है. कफ़ की प्रॉब्लम बढ़ गई है. नौजवान लोगों पर इसका असर दिख रहा है. मृत्यु दर के आँकड़े भी बढ़े हैं. ठीक इसी तरह ऑक्सीजन की ज़रूरत वाले मरीजों की संख्या भी 15 फीसदी बढ़ गई है. कुल मिलाकर देखें तो इसका गंभीर असर पड़ा है. ऐसा लगता है कि अगले दो महीने तक ये इसी तरह से जारी रहेगा। कोई दवा या वैक्सीन वायरस को म्यूटेट होने से रोक नहीं सकती है. केवल इंसान वायरस को म्यूटेट होने से रोक सकता है। वायरस एक व्यक्ति के शरीर में म्यूटेट करने के साथ-साथ जब दूसरे व्यक्ति में प्रवेश करता है, अगले ठिकाने पर भी वो म्यूटेट करता है। अगर पहला व्यक्ति इस बात को लेकर एहतियात बरते कि उससे किसी और को संक्रमण न हो तो वायरस पहले व्यक्ति के शरीर में ही रहेगा। इसका मतलब ये हुआ कि पहले व्यक्ति में ही म्यूटेशन की प्रक्रिया रुक जाएगी।
इंडियन सार्स-सीओवी-2 कंसोर्टियम ऑन जेनोमिक्स (INSACOG)
यह दस राष्ट्रीय लेबोरेटरी का समूह है जो देश में अलग अलग हिस्सों से आये सैंपल की जीनोमिक सिक्वेंसिंग का पता लगता है। INSACOG का गठन 25 दिसंबर 2020 को किया गया था जो जीनोमिक सीक्वेंसिंग के साथ-साथ कोविड-19 वायरस के फैलने और जीनोमिक वेरिएंट के महामारी विज्ञान के रुझान पर अध्ययन करता है।