शहरी रोजगार गारंटी योजना कितनी जरूरी? – UPSC
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शहरी रोजगार गारंटी योजना कितनी जरूरी? – UPSC

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शहरी क्षेत्रों की गरीब और बेरोजगार आबादी के बीच मनरेगा जैसा गारंटीशुदा रोजगार देने की मांग लम्बे समय से उठती रही है और कुछ राज्यों ने इस दिशा में पहल भी की है। राजस्थान राज्य इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना (आईजीआरवाई) प्रारम्भ करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। इस योजना के तहत राज्य के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले हर वयस्क व्यक्ति को साल भर में कम से कम 125 दिन के रोजगार का अधिकार का प्रावधान किया गया है। हालांकि इससे पहले कुछ और राज्यों ने भी इस प्रकार की योजनाओं का प्रयोग राज्य स्तर पर बेरोज़गार से लड़ने के लिए किया है। इनके कुछ उदहारण हैं :

  • झारखंड और ओडिशा ने 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के बाद रोजगार गारंटी योजना शुरू की थी, ताकि लॉकडाउन के बाद अपने शहर-कस्बों में लौटे लोगों को काम दिया जा सके;
  • केरल में 2011 से यह योजना चल रही है;
  • हिमाचल प्रदेश में 2019 में इसकी शुरुआत हुई थी;

परंतु रोजगार को अधिकार से जोड़ कर राजस्थान ने लंबी लकीर खींच दी है।

मनरेगा का महत्व:

दरसल कोविड-19 के बाद से पूरे देश में शहरी आबादी के लिए गारंटीशुदा रोजगार कार्यक्रम की मांग जोर पकड़ रही है। इसे कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर शुरू करने का प्रयास भी किया है। इसी उद्देश्य से 5 अगस्त 2022 को संसद सदस्य बिनॉय विश्वम ने एक निजी विधेयक पेश किया था, जिसे “भगत सिंह राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी विधेयक” नाम दिया गया है। बेशक राज्यों की योजनाएं एक स्वागत योग्य कदम हैं, लेकिन उनमें मनरेगा जितनी प्रभावी होने की संभावना नहीं है क्योंकि मनरेगा संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है। इसमें व्यावहारिक अंतर यह है कि नई राज्य सरकारें योजनाओं को कभी भी बंद या कमजोर कर सकती हैं। ऐसा करने पर लोग रोजगार के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा पाएंगे। जैसे कि, मनरेगा से पहले भारत में बहुत से रोजगार कार्यक्रम थे, लेकिन मांग पर नौकरियां उपलब्ध कराने की विधायी गारंटी नहीं थी।

गरीब और बेरोजगार आबादी के लिए मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी योजना मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है बशर्ते इसे निम्न सुधारो के साथ लागु किया जाए-

  • इसे वेलफेयर फंड स्कीम के साथ जोड़कर प्रारम्भ किया जाए जैसे केरल ने हाल ही में अय्यंकाली शहरी रोजगार गारंटी योजना (एयूईजीएस) के लाभार्थियों को मनरेगा वेलफेयर फंड से जोड़ा है। इस फंड में मजदूरों के लिए पेंशन, चिकित्सा सहायता और उनके बच्चों के लिए शैक्षिक सहायता का प्रावधान है ताकि अधिक से अधिक शहरी गरीब इस योजना की ओर आकर्षित हों।
  • निजी संस्थानों में अस्थायी श्रमिकों के लिए प्रचलित दैनिक मजदूरी की तुलना में इस योजना के तहत दी जाने वाली मजदूरी अधिक होनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक शहरी गरीब इस योजना से जुड़ सके।
  • योजना के तहत रोजगार उपलब्ध कराने में निजी क्षेत्र को भी शामिल करने का प्रयास किया जाए ताकि निजीकरण के इस माहौल में निजी क्षेत्र की सामाजिक जिम्मेदारी (Social Responsibility) तय की जा सके;
  • गरीब शहरी युवाओं के लिए प्रशिक्षण सुविधा (training facility) की व्यवस्था की जाए ताकि औद्योगिक इकाइयों (industrial units) में कुशल श्रमिक (skilled labour) उपलब्ध हो सके;
  • रोजगार की गारंटी हर परिवार को दी जाए या हर वयस्क शहरी को मिले;
  • इस योजना के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.7 से 2.7 प्रतिशत तक निवेश (invest) किया जाना चाहिए.

यदि शहरी भारत के लिए एक गारंटीशुदा रोजगार योजना प्रारम्भ होती है तो इससे निम्न लाभ होंगे –

  • इस योजना से महिलाओं के समक्ष रोजगार का एक विकल्प खड़ा हो जायेगा जिससे महिला सशक्तिकरण (women empowerment) को बढ़ावा मिलेगा;
  • इस योजना से जल संरक्षण (water conservation) जैसे कार्यो को प्रोत्साहन मिलेगा। इंदिरा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत अजमेर के एक छोर में पांच सौ वर्ष पूर्व बना चौरसियाबास तालाब का पुनरुत्थान सम्भव हो पाया है;
  • शहरी क्षेत्रों में गरीबी (poverty) और बेरोजगारी (unemployment) पर अंकुश लग सकेगा;
  • पौधारोपण (afforestation) जैसे काम इस योजना के तहत कराए जा सकते है, जिससे शहरी प्रदूषण पर अंकुश लग सकता है;
  • इस योजना में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का नामांकन अधिक हो सकता है क्योंकि महिलाएं अपने घरों के नजदीक काम करना पसंद करती हैं, चाहे उन्हें थोड़ी कम मजदूरी मिले।

इस योजना का असल मकसद उन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है, जिन्हें कहीं काम नहीं मिलता, ताकि वे निराश न हों और कम से कम अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। कोरोना महामारी में लोग देख चुके है कि उन्हें किन समस्याओ से होकर गुजरना पड़ा है। यूं तो भारत में राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तर पर कई शहरी रोजगार और कौशल विकास योजनाएं चल रही हैं, लेकिन उनमें से कोई भी शहरों में बेरोजगारी की समस्या को समग्र (holistic) रूप से रोकने में सक्षम नहीं है। ऐसे में मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी योजना आशा की किरण हो सकती है।