इस लेख में आप पढ़ेंगे: Hijab Controversy/ कर्नाटक हिजाब विवाद- UPSC
कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद (Hijab Controversy) धर्म से अधिक व्यक्तिगत अधिकार का मुद्दा है। संविधान नागरिकों को कुछ व्यक्तिगत अधिकार देता है। इन व्यक्तिगत अधिकारों में निजता का अधिकार, धर्म का अधिकार, जीवन का अधिकार और बराबरी का अधिकार प्रमुख हैं। बराबरी के अधिकार की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चूका है कि इसमें मनमानी के ख़िलाफ़ अधिकार भी शामिल है। कोई भी मनमाना क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
सवाल यह भी उठता है कि क्या शिक्षण संस्थान ड्रेस कोड या यूनीफ़ॉर्म निर्धारित कर सकते हैं। स्कूल को यह अधिकार तो है कि वो अपना कोई ड्रेस कोड निर्धारित करे। लेकिन इसे निर्धारित करने में वो किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकता है, जबकि एजुकेशन एक्ट के तहत संस्थान को यूनीफ़ॉर्म निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। अगर कोई संस्थान नियम बनाता भी है तो वो नियम क़ानून के दायरे के बाहर नहीं हो सकते हैं।
यहां सवाल संविधान के तहत मिले धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का भी है। धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा यह है कि जनहित में, नैतिकता में और स्वास्थ्य के आधार पर उसे सीमित किया जा सकता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या हिजाब पहनने से ऐसी किसी सीमा का उल्लंघन होता है? दरसल किसी का हिजाब पहनना कोई अनैतिक काम नहीं है, ना ही ये किसी जनहित के ख़िलाफ़ है और ना ही ये किसी और मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इस विवाद में अदालत के सामने ये अहम मुद्दा होगा कि एक तरफ़ संस्थान की स्वतंत्रता है और दूसरी तरफ़ निजी स्वतंत्रता है।
हिजाब को लेकर इससे पहले भी विवाद अदालत पहुंचते रहे हैं। 2018 में दिए अपने फ़ैसले में केरल हाई कोर्ट ने निर्धारित किया था कि छात्राओं का अपनी मर्ज़ी के अनुसार ड्रेस पहनना ऐसा ही एक मूल अधिकार है जैसे कि किसी स्कूल का ये तय करना कि सभी छात्र उसकी तय की हुई यूनीफ़ॉर्म पहनें। यह सही है कि केरल हाई कोर्ट का निर्णय कर्नाटक हाई कोर्ट पर बाध्य नहीं है।
हिजाब पर विवाद का मामला फ़िलहाल अदालत में है और जो भी निर्णय होगा उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। फिर भी दोनों ही समूहों को थोड़ी लचक दिखानी होगी। एक आधुनिक प्रगतिशील समाज में रूढ़िवादी रवैया अख़्तियार करना अच्छी बात नहीं है।